छोटे-छोटे सवाल (उपन्यास): दुष्यन्त कुमार
“जी हाँ ।" राजेश्वर ने कहा। फिर मुस्कराकर सम्बन्धों की निकटता बढ़ाने की गर्ज़ से बोला,
“कोई गुनाह तो नहीं है गाँव का होना ?"
“गुनाह है साहब, बिलकुल गुनाह है।” जयप्रकाश ने तेजी से उसकी बात पलटते हुए कहा, "हर जगह की अपनी खूबियाँ होती हैं। कई जगहें ऐसी होती हैं जहाँ पान थूकना या सिगरेट-बीड़ी पीना गुनाह होता है और कई जगहें ऐसी होती हैं जहाँ बोलना चालना और हँसना- रोना भी गुनाह होता है । और आप देखेंगे कि ऐसी जगहें भी हैं जहाँ जीना भी गुनाह है। और लोग ये गुनाह कर रहे हैं क्योंकि उनके पास करने के लिए इससे ज़्यादा ठोस और इससे ज़्यादा महत्त्वपूर्ण और कोई काम नहीं है ।"
राजेश्वर को उसका बात करने का नाटकीय अन्दाज़ बड़ा प्यारा लगा। पर उसने साथ ही यह भी महसूस किया कि यह विषयान्तर हो रहा है। अतः पुनः प्रश्न पर लौटते हुए बोला, “आपकी बात सही है। मगर आप मुझे कृषि योजना के बारे में बता रहे थे ।”
“मैं तो नहीं बता रहा था।” मुस्कराकर जयप्रकाश ने कहा, “अलबत्ता आपने सवाल जरूर किया था । "
“ चलिए, यही सही ।" राजेश्वर हँसकर बोला।
" आप कृषि - योजना के बारे में जानना चाहते हैं ?" "जी हाँ !” राजेश्वर ने पूरी उत्सुकता से कहा ।
" और आप गाँव के रहनेवाले हैं ?”
“हूँ तो ।”
"क्या आपने सानियों को ज़मीदारों की बेगार के लिए कभी कुइयाँ खोदते हुए देखा है ?" जयप्रकाश ने उसी तरह की मुस्कुराहट होंठों पर लिए हुए पूछा । “हाँ, देखा है।” राजेश्वर ने तपाक से उत्तर दिया। हालाँकि उसने गाँव में कुइयाँ नहीं, कुएँ की ही खुदाई देखी थी ।
जयप्रकाश ने अपनी बात को और स्पष्ट किया, बोला, “देखिए कुइयाँ और में बड़ा फ़र्क होता है। कुएँ, पैसे देकर, जनता द्वारा मज़दूरों से खुदवाए जाते हैं और कुइयाँ, भूड़ के ज़मींदार, परोपकार का हवाला देकर सानियों से फोकट में खुदवा लेते हैं। ये कुइयाँ साल दो साल बाद रेत के तूफ़ान में अँटकर बेकार हो जाती हैं। परोपकार का लाभ ज़मींदार को मिलता है जिन्हें पानी पीनेवाले मुसाफ़िर दुआएँ देते हैं और सानियों का श्रम पानी में मिल जाता है । "
" मगर कृषि योजना... ?"
“कृषि योजना भी एक कुइयाँ है जिसे उत्तमचन्द गाँव के विद्यार्थियों द्वारा इस आशा में खुदवा रहे हैं कि उन्हें प्रिंसिपल होने का लाभ मिलेगा मगर कुइयाँ खुदवाने का लाभ स्थायी कहाँ होता है ! देखिए न, उत्तमचन्द जी भी अस्थायी प्रिंसिपल हैं।” और इस उपमा पर वह इतनी ज़ोर से हँस दिया कि राजेश्वर की भी हँसी फूटे बिना न रह सकी।
हालाँकि जयप्रकाश ने राजेश्वर को हँसकर टाल दिया और कृषि - योजना के बारे में साफ़-साफ़ कुछ भी नहीं बताया, फिर भी वह इतना समझ गया कि कृषि-योजना में गाँव के विद्यार्थियों का श्रम और समय लगाकर उत्तमचन्द मैनेजमेंट पर अपनी कार्य-निष्ठा का प्रभाव डालना चाहता है। मगर उसका कौतूहल इतने से ही शान्त नहीं हुआ ।
अतः सब कुछ समझ जाने का भाव मुख पर लाते हुए उसने योजना कॉलेज के इन्हीं खेतों में चलती होगी ?"
जयप्रकाश ने गर्दन हिलाकर स्वीकार किया ।
पूछा, “कृषि राजेश्वर ने कुछ सोचते हुए कहा, “और गाँवों के लड़कों के खून-पसीने की कमाई मैनेजमेंट के बनिए हड़प जाते होंगे ?"
जयप्रकाश ने फिर गर्दन हिला दी।
यद्यपि राजेश्वर गाँव का रहनेवाला था और कृषि - योजना पर उसकी प्रतिक्रिया बड़ी अनुकूल थी, फिर भी जयप्रकाश के मन में आशंकाएँ उठ रही थीं। क्या जाने मैनेजमेंट के किस मेम्बर से उसके कैसे सम्बन्ध हों ? इसलिए वह उसकी बातों का जवाब सिर्फ़ गर्दन हिलाकर दे रहा था ।
राजेश्वर की कनपटियों की नसें उभरने लगीं और उसके चेहरे पर आक्रोशपूर्ण तनाव बढ़ता गया । मुँह का थूक सटकते हुए बड़ी घृणा से उसने कहा, उत्तमचन्द पूरा हरामी है, यह बात मैं इंटरव्यू के दिन ही समझ गया था। मगर मास्टर साहब, मैं आपसे बताए देता हूँ कि ये मैनेजमेंट के लोग इसके भी बाप हैं। क्या वे नहीं जानते थे कि इस कृषि-योजना द्वारा गाँव के लड़कों की ज़िन्दगियाँ बरबाद की जा रही हैं ?” और फिर एक लम्बी साँस छोड़ते हुए राजेश्वर बोला, “मुझे आश्चर्य है कि गाँव के होकर भी आपने ऐसी बातें कैसे बरदाश्त कर लीं ?"
बात राजेश्वर ने कुछ इस दर्द और अपनत्व से कही थी कि जयप्रकाश के सारे शरीर में झनझनी-सी दौड़ गई। जैसे विरोध और असन्तोष की दबी हुई बारूद में सहसा किसी ने चिंगारी लगा दी हो ।
भय तभी तक भय रहता है जब तक हम अपने-आपको अकेला और कमज़ोर महसूस करते हैं। विश्वासपूर्ण राजेश्वर की चुनौती ने जयप्रकाश को एक सहारा दिया । उसका मन हुआ कि वह फट पड़े, मगर भीतर का आक्रोश दबाकर ईमानदारी से बोला, “अकेला चना भाड़ नहीं भूँज सकता ठाकुर भाई, और मैं अपनों के होते हुए भी अकेला था। किसी ने कभी इतनी हिम्मत नहीं दिखाई कि मेरे स्वर को सहारा दे। मेरी आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ बनकर रह गई । "
राजेश्वर तैश में बोला, “मैं तो बरदाश्त नहीं करूँगा ऐसी बातें। मैं गाँव का रहनेवाला हूँ और गाँव के लड़कों का हित देखना मेरा पहला फर्ज़ है । "